भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितनी है मुहब्बत मेरे दिलवर से पूछ लो / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी है मुहब्बत मेरे दिलवर से पूछ लो
क्या राज़ निगाहों में है सागर से पूछ लो

हर रोज़ छिपाते हैं जो फटती हैं दरारें
हो ग़र नहीं यकीन मेरे घर से पूछ लो

धोखे हैं बहुत राह में हर ओर रहजनी
सीने में चुभोये हुए नश्तर से पूछ लो

देते किसी को दोष क्यों करते हो शिकायत
चौखट पे सर झुका जहाँ उस दर से पूछ लो

खोयी है चाँदनी कहीं राकेश है उदास
रोता है जार जार क्यों अम्बर से पूछ लो

दुख दर्द हो सीने में तो खुशियाँ कहाँ मिलें
मायूस दिल है क्यों इसी मंजर से पूछ लो

थे दोस्त जो वो आज हमें लूट ले गये
ख़ंजर हैं जिन के हाथ में रहबर से पूछ लो

बिस्तर बिछा हुआ है मगर नींद खो गयी
लिपटे हैं कहाँ ख्वाब ये चादर से पूछ लो

हमराह तू नहीं मेरा साथी न हमसफ़र
ठोकर है हर इक मोड़ पे पत्थर से पूछ लो