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कितने अच्छे थे वो दिन / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
कितने अच्छे थे वो दिन
जब उतना नहीं था
जितना आज है
एक जोड़ी जूते
पुराना बस्ता
पुराने पन्नो से बनी नई कापियाँ
भाई-बहनों की क़िताबें
एक रुपये करोड़ समान
पत्थरों से भी खेल लेना
और
माँ का बनाया स्वेटर
स्नेह की गर्माहट देता
सच, आज सब कुछ है
कितनी क़िताबें
कितनी डायरी
महँगे फ़ोन
सुविधा का हर सामान
बटन दबाने की दूरी पर
बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ
पर वो दूर तक चल कर
माँ का एक काम कर देने की ख़ुशी नहीं देते
दिन भर नीम की छाँव मे जो आराम था
एयर-कन्डीश्नर नहीं देते
सच, बहुत अच्छे थे वो दिन
जब सब सीमित था