भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कितने आसान सबके सफ़र हो गए / विजय वाते
Kavita Kosh से
कितने आसान
सबके सफर हो गए|
रेत पर नाम लिखकर अमर हो गए|
ये जो कुर्सी मिली, क्या करिश्मा हुआ,
अब तो दुश्मन भी लख्ते-जिगर हो गए|
साँप-सीढ़ी का ये खेल भी खूब है,
वो जो नब्बे थे, बिल्कुल सिफ़र हो गए|
एक लानत, मलामत मुसीबत बला,
तेग लकड़ी की थी, साईं ग़दर हो गए|
सबके चहरे पे एक सनसनी की ख़बर,
जैसे अख़बार वैसे शहर हो गए|
ये शिकायत जहाजों की है आजकल,
उथले तालाब भी अब बहर हो गए|