कितने ईश्वर रह जाओगे? / निर्देश निधि
तुम मेरे पिता, मेरे ईश्वर हो
फिर भी मुझ धरती पुत्र को
वसीयत नहीं की ज़रा-सी संवेदना
सोने-सी पकी बालियों पर,
हर बरस गिराते हो बरसात का पारा
भोगते नहीं पीड़ा मेरी तुम ज़रा
फिर भी तो तुम मेरे पिता, मेरे ईश्वर हो
फसल के कटते ही
उड़ेलने लगते हो आग आसमान से
ताकि बादलों की फूट पड़े नकसीर
और जड़ देते हो मेरे पैरों में ग़रीबी की नाल
फिर भी तुम मेरे पिता, मेरे ईश्वर हो
धान की अनबुझ प्यासें जब मांगती हैं पानी
करता हूँ दिन की रात
रात को देता हूँ चकमा दिन का
रखता हूँ कैद, धैर्य मुट्ठियों में
तुम फिर-फिर फेंट देते हो मेरी कड़ी मेहनतें
दलदल की लिजलिजी कीच में
नहीं देते हो महादान किसी एक बूंद का
फिर भी तुम मेरे पिता हो, मेरे ईश्वर हो
अगर मैं मानना छोड़ दूँ तुम्हें,
और मुझे देख-देख सब भी
ज़रा सोचना कि तुम कितने
और किसके ईश्वर रह जाओगे?