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कितने ताल? / विनीता परमार
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बावडी,सर,तालाब,पोखर, ताल, झील,
कितने नाम है मेरे
कभी मेरे नाम से शहरो के नाम होते थे
नाम जिन्दा है लेकिन मैं कहा हूँ?
कही रानी विक्टोरिया के लाए फूलों ने ढक लिया,
तो कही इंसानो ढक दिया
मैं कहाँ हूँ?
मेंरे किनारे आम,पीपल,जामुन होते थे
इंतज़ार उस पथिक का होता था
जो प्यास बुझाता था
आज मैं सरकार के अभियान में हूँ या शोध का विषय
कभी बच्चे बैनर तले नारा लगाते है
और जलपान का खाली पैकेट मुझ में डाल जाते है,
कभी मैं राही का विश्वास थी
तो कभी सुकुन की कुंजी थी
अब तो इंतज़ार उस चक्र का है
जो मुझे इंसानी चक्रव्यूह से बाहर निकालेगा
आएगा वो पथिक बुझायेगा प्यास अपनी
एतवार है उस राही पे आयेगा इक दिन…