भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितने दिन हुए देखे / गुलाब सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल पर बैठा हुआ भँवरा
शाख पर गाती हुई चिड़िया
घास पर बैठी हुई तितली
और तितली देखती गुड़िया
हमें कितने दिन हुए देखे !

घाट के नीचे झुके दो पेड़
धार पर ठहरी हुई दो आँख
सतह से उठता हुआ बादल
और रह-रह फड़कती दो पाँख
हमें कितने दिन हुए देखे !

बाँह-सी फैली हुई राहें
गोद-सा वह धूल का संसार
धूल पर उभरे हुए दो पाँव
और उन पर बिछा हरसिंगार
हमें कितने दिन हुए देखे !

घुप अँधेरे में दिए की लौ
दिए जल पर भी जलाते लोग
रोशनी के साथ बहती नदी
और उससे नाव का संयोग
हमें कितने दिन हुए देखे !