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कितने दीप जलाऊँ द्वारे / संतोष कुमार सिंह

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कितने दीप जलाऊँ द्वारे,
प्रियतम तेरे स्वागत में।

रोज गिरें नयनों से मोती।
बुझी हुई जो मन की ज्योति।
आओ उसे जलाएँ मिलकर,
हम तुम दोनों आपस में।
कितने दीप जलाऊँ द्वारे,
प्रियतम तेरे स्वागत में।।

महक उठा जूड़े का गजरा।
बहा तेरे स्वागत में कजरा।
शीतल किरणें लेकर आया,
कोई चाँद अमावस में।
कितने दीप जलाऊँ द्वारे,
प्रियतम तेरे स्वागत में।।

दिल में छूट रहीं फुलझड़ियाँ।
खनक उठीं हाथों की चूड़ियाँ।
झुकी नयन की पलकें मेरी,
पुनि-पुनि तेरे स्वागत में।
कितने दीप जलाऊँ द्वारे,
प्रियतम तेरे स्वागत में।।