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कितने बदल गए हैं गाँव / शम्भुनाथ तिवारी

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सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव!

परदेशी की बाट जोहती आँखें अब हो गई कहानी,
कोयल-मोर-पपीहे की वह टेर कहीं खो गई सुहानी
अब मुड़ेर से नहीं सुनाई देता है कौवे का काँव,
सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव!

वे रिश्तोंवाले संबोधन भी देते हैं नहीं सुनाई,
भाईचारा-प्यार-मोहब्बत वाली बातें हुईं पराई।
मधुर स्नेह-सम्बन्धों में कब जाने कौन अड़ा दे पाँव,
सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव!

सूखे ताल-तलैया-पोखर पनघट पर छाई वीरानी,
सूनी पड़ी हुई चौपलें अब अलाव की बात पुरानी।
कहाँ गईं छितवन की छाँहें उस बूढ़े बरगद की छाँव,
सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव।

रिश्ते-नातों की बातों पर हो जाती फ़ीकी मुस्कानें,
बात-बात पर पड़ जाते हैं पीछे लोग मुट्ठियाँ ताने।
कहाँ बटोही करे बसेरा कोई नहीं ठिकाना-ठाँव,
सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव।

चले गए जो शहर गाँव की यादें उनको नहीं सतातीं,
घरवाले रो-रोकर चाहे लिखवायें पाती पर पाती।
भूल गए ममता का आँचल दादा जी के दुखते पाँव,
सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव।

नहीं भागता हैं मीलों मन जंगल-टीले-नदी किनारे,
सूने खेत-गली-चौराहे पेड़ खड़े किस्मत के मारे।
सूखी नदी रेत में जर्जर पड़ी सिसकती डोंगी नाँव,
सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव।