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किताबे इश्क़ में ये कब लिखा है / रंजना वर्मा

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किताबे इश्क में ये कब लिखा है
मुहब्बत में वफ़ा का सिलसिला है

करे राहे मुहब्बत में वफ़ा जो
उसे पागल का ही रुतबा मिला है

मिलाते ही नज़र मुँह फेर लेना
यही तो हुस्न वालों की अदा है

रहो बस दूर उल्फ़त की खता से
किसी को चैन कब इस ने दिया है

बहाना अश्क़ औ बेचैन रहना
यही तो इश्क़ वालों की सज़ा है

भटकते ही रहें मायूस हो कर
ग़मे फुरकत में आँसू ही पिया है

हो मिर्ज़ा साहिबा या हीर लैला
किया इस इश्क़ ने किस का भला है