भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए / जयकृष्ण राय तुषार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए

ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .


तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी

तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए .


अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं

गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .


जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा

वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए .


ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ

किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .


मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता

शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .


बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में

किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .


बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना

किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .


शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों

अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए .