किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए / जयकृष्ण राय तुषार
तुझे जलती हुई लौ ,मुझको परवाना लिखा जाए
ये दिल कहता है इक अच्छा सा अफ़साना लिखा जाए .
तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से है अच्छी
तुझे कश्मीर ,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए .
अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं ,न दर्शक हैं
गज़ल किसके लिए ,किसके लिए गाना लिखा जाए .
जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुजरा
वो कहता है गज़ल में जाम -ओ -पैमाना लिखा जाए .
ये दरिया ,झील ,पर्वत ,वादियों को छोड़कर आओ
किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए .
मुझे बदनामियों का डर है ,तुमसे कुछ नहीं कहता
शहर को छोडकर जाऊँ तो दीवाना लिखा जाए .
बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में
किसे अपना करीबी किसको बेगाना लिखा जाए .
बदलते दौर में शहजादियों का जिक्र मत करना
किसी मजदूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए .
शहर का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारों
अब अपनी डायरी में कुछ तो रोजाना लिखा जाए .