भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किदवई और पटेल रोवत / रामचरन गुप्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुल्म तैने ढाय दियो एरै नत्थू भइया
अस्सी साल बाप बूढ़े कौ बनि गयौ प्राण लिबइया।
भारत की फुलवार पेड़-शांति को उड़ौ पपइया
नजर न पड़े बाग कौ माली, सूनी पड़ी मढ़ैया।
आज लंगोटी पीली वालौ, बिन हथियार लड़ैया
अरिदल मर्दन कष्ट निवारण भारत मान रखैया।
आज न रहयौ हिन्द केसरी नैया को खिवैया
रामचरन रह गये अकेले अब न सलाह दिवैया
किदवई और पटेल रोवते, रहयौ न धीर बधइया |