किनका के कोखि मे सीता जनम लेलै / अंगिका लोकगीत
राम और सीता का विवाह संपन्न हुआ। दान दहेज भी काफी मिला। राम सीता को लेकर घर चले। लड़की पराई हो जाने पर सीता की माँ रोने लगी कि अगर मैं जानती कि बेटी पैदा होगी, तो मैं पहले ही मिर्च खा लेती, जिसकी झाँस से यह मर जाती। इस गीत से समाज में लड़की की उपेक्षा का आभास मिलता है।
किनका के कोखि में सीता जनम लेलै, किनका के कोखि सीरी राम हे।
किनका के कोखि में बाम्हन जनम लेलै, पोथिया लेहु न बिचारि हे॥1॥
अम्माँ के कोखि में सीता जनम लेलै, कोसिला कोखि सीरी राम हे।
सीरी बिसनु कोखि बाम्हन जनम लेलै, पोथिया लेहु न बिचारि हे।
ऐसन पोथिया बिचारिहो<ref>विचारना</ref> हे बाम्हन, रामे सीता होइतो बियाह हे॥2॥
कौने रीसी देलन झारी से तमलुआ<ref>तुमड़ी; तांबे का बरतन</ref>, कौने रीसी देलन धेनु गाय हे।
कौने रीसी देलन सीता ऐसन बेटिया, रामे लेल अँगुरी लगाय हे॥3॥
बाबा रीसी देलन झारी रे तमलुआ, भैया रीसी देलन धेनु गाय हे।
ऐहब अम्मा देलन सीता ऐसन बेटिया, रामे लेलन अँगुरी लगाय हे॥4॥
जखनहिं अरे सीता तोहरो जलम भेलै, नगर उठल झँझकार हे।
जौ हमें जनितौं माइ हे सीता जनमती, खइतौं<ref>खाती</ref> में मरीच<ref>मिर्च</ref> पचास हे॥5॥
मरीज के दौंके<ref>झाँस से</ref> माइ हे सीता मरि जैती, छूटी जायत जीब के जंजाल हे।
पसरहिं<ref>बिछाया हुआ; फैलाया हुआ</ref> सेजिया माइ हे उसरहिं<ref>वैसे ही; बिना व्यवहार किये हुए</ref> नेराबितौं<ref>समेट लेती; हटा देती; त्याग देती</ref>, परभु जी के रखितौं भुलाइ हे॥6॥