ऐ मेरी प्रेरणा-बीन के वादक!
बे जाने जब जब, बजा चुके हो,
जगा चुके हो, सोते फितनों को जब-तब,
किन चरणों में आज उन्हें रक्खूँ?
किसका अपमान करूँ?
किसकी ध्वनियों को दुहराऊँ
हृदय हलाहल-दान करूँ?
आया हूँ मैं नाथ, तुम्हारे कण्ठ कालिमा देने को!
और तुम्हारा वैभव लेकर गीत तुम्हारा होने को।
रचनाकाल: श्री मनोहर पन्त जी का निवास, जबलपुर-१९३२