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किनारें बदल गए / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
जि़न्दगी की आपाधापी में
कहीं बहुत पीछे छोड़ आया हूँ मैं अपना दिल
साथ छूट गए वह सारे अहसास
जिन्हें कभी दिल से लगा रखा था
वो अहसास जो कभी मेरी पहचान बनकर
मेरे साथ चला करते थे
उन अहसासों के साथ धीरे धीरे
बिछड़ते गए
मुझसे मेरे उसूल
कुछ उसूलों को मैंने छोड़ा
तो कुछ मुझे ख़ुद-ब-ख़ुद छोड़ गए
समय के कँटीले बहाव में
बह गए मेरे लक्ष्य, मेरे वह गर्मजोश इरादे
कहने को है अब भी जि़न्दगी का सफ़र निरंतर
पर जीने के इरादे बदल गए
बदल गए सारे पहलू, वह वादे बदल गए
निकले थे जि़ंदगी की कश्ती लेकर
बहते दरिया में
मगर गौर से देखें तो अब किनारे बदल गए।