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किन्तु विजयी! यदि तुम बिना माँगे ही / अज्ञेय

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किन्तु विजयी! यदि तुम बिना माँगे ही, स्वेच्छा से अपने अन्त:करण के छलकते हुए सम्पूर्णत्व से विवश हो कर, अपने विजय-पथ पर रुक कर कुछ दे दोगे तो...
तो तुम देखोगे, तुम्हारा विजय-पथ समाप्त हो गया है, तुम्हारी विजय-यात्रा पूरी हो गयी है, तुम अपने विश्राम-स्थल पर पहुँच गये हो।
मेरे प्रेम में!

1934