भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किया उसने प्रेम वो बुराई हो गई / प्रदीप कुमार
Kavita Kosh से
आज फिर वह पराई हो गई
किया उसने प्रेम वह बुराई हो गई
मां जो लाड करते-करते
थकती नहीं थी रात-भर।
शाम तक जो लड़ बैठती
अपनी बेटी के लिए राम तक
बाप पढ़ता था तारीफ़ों के कशीदें
जिसके जिले भर में प्रथम आने पर,
और भाई
जिसको अपना हिस्सा बांट देती
थोड़ी भूख जताने पर
क्यूं समाज मूक बना
पाबंदी क्यूं लगी उसके खिलखिलाने पर
रिश्ते झुठला गए सभी
उसकी एक बात मनवाने पर
क्यों किसी का दिल न पसीजा
उसके जहर खाने पर
खून का रंग हरा हो गया
रिश्ते सारे बिखर गए
ममता धराशायी हो गई
जब थोड़ी जग हंसाई हो गई
आज फिर वह पराई हो गई
किया उसने प्रेम वह बुराई हो गई॥