किया कलाम ये 'सौदा' से एक आक़िल ने / सौदा
किया कलाम ये 'सौदा' से एक आक़िल<ref>बुद्धिमान</ref> ने
किसू से रब्त<ref>सम्बन्ध</ref>कोई ज़ेरे-आसमाँ<ref>आकाश के नीचे </ref>न करे
किया जो तजरबा, उन दोस्तों को बद पाया
बदी का जिनपे किसी तरह दिल ग़ुमाँ न करे
चखा उन्हों की जो ऐ यार दोस्ती का शहद
वो तल्ख़-<ref> कड़वा</ref>, कभू ज़हरे-दुश्मनाँ<ref>दुश्मनों का दिया ज़हर</ref> न करे
बग़ैर बुख़्लो-हसद<ref> कंजूसी और जलन के बिना</ref> चाहिए कोई मज़कूर<ref> ज़िक्र </ref>
उन्हों का मेहरो-मुरव्वत के दर्मियाँ न करे
मैं उनसे मिलके नदाँ<ref>नदान, मन मारकर</ref> इख़्तियार उज़लत<ref>एकान्तवास</ref> की
दो-चार उनसे ख़ुदा मुझको दर-जहाँ<ref>दुनिया में</ref> न करे
वो आदमी है बहुत दूर आदमीयत से
जो गोशे-दिल<ref>दिल का कोना</ref> ब-सु-ए-हर्फ़े-आक़िलाँ<ref> बुद्धिमानों के कथन की ओर</ref>न करे
वो आश्ना हैं जहाँ में कि इम्तिहान के बाद
ज़बाँ वो कि लान<ref>लानत</ref> उनपे हर ज़माँ<ref>ज़माना</ref> न करे
ये सुनके उससे कहा मुस्कुरा के 'सौदा' ने
शिकायत इतनी किसू की कोई बयाँ न करे
भले-बुरे के तुझे इम्तिहान से क्या काम
ये शुक्र कर जो कोई तुझको<ref>तेरा</ref> इम्तहाँ न करे