भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किया है हवन तो हथेली जली है / सूर्यपाल सिंह
Kavita Kosh से
किया है हवन तो हथेली जली है।
कहो किस तरह ज़िन्दगी यह पली है?
यहाँ देष दुनिया सभी दांव पर हैं,
न उत्कोच लेते उँगलियाँ जली हैं।
कली कंटकों की प्रकृति तो अलग है,
मगर कंटकों बीच पलती कली है।
यहाँ आग पानी व तिनका सभी हैं,
लगा आग फिर वे बुझाते गली हैं।
जलाओ बुझाओ बुझाकर जलाओ,
बची ज़िन्दगी की न कोई तली है।