भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किरचे सपनों कें / ओम व्यास
Kavita Kosh से
					
										
					
					अहसासों की 
गुनगुनी धूप जब
यादों के झरोखों से 
स्पर्श करती है 
तब
सहसा 
सब कुछ बीता हुआ 
सामने आ जाता है
अंगुली में दुपट्टे का लपेटना 
अंगूठे से मिट्टी कुरेदना 
काँपते हुए किताबों का देना 
कुछ खिलाते हुए अंगुली काट लेना। 
स्मृतियाँ जो बची हुई है 
तुम्हारे दूर बहुत दूर 
चले जाने के बाद 
आँखों को भिगो जाती है 
आँखें जिनमें बचे है 
अभी किरच किरच सपने 
कुछ मेरे कुछ सपने
	
	