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किरचे सपनों कें / ओम व्यास
Kavita Kosh से
अहसासों की
गुनगुनी धूप जब
यादों के झरोखों से
स्पर्श करती है
तब
सहसा
सब कुछ बीता हुआ
सामने आ जाता है
अंगुली में दुपट्टे का लपेटना
अंगूठे से मिट्टी कुरेदना
काँपते हुए किताबों का देना
कुछ खिलाते हुए अंगुली काट लेना।
स्मृतियाँ जो बची हुई है
तुम्हारे दूर बहुत दूर
चले जाने के बाद
आँखों को भिगो जाती है
आँखें जिनमें बचे है
अभी किरच किरच सपने
कुछ मेरे कुछ सपने