भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किरण मर जाएगी / अज्ञेय
Kavita Kosh से
किरण मर जाएगी!
लाल होके झलकेगा भोर का आलोक-
उर का रहस्य ओठ सकेंगे न रोक।
प्यार की नीहार-बूँद मूक झर जाएगी!
इसी बीच किरण मर जाएगी!
ओप देगा व्योम श्लथ कुहासे का जाल-
कड़ी-कड़ी छिन्न होगी तारकों की माल।
मेरे माया-लोक की विभूति बिखर जाएगी!
इसी बीच किरण मर जाएगी!
लखनऊ, 4 नवम्बर, 1946