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किरायेदार / पंछी जालौनवी

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हम मिज़ाज से
थोड़े ज़िद्दी हैं
और ज़िंदा हैं
या जीने की हमें
इजाज़त मिली हुई है
ख़ुदको हमने
गहन रखा है पहले
एक एक ईंट की
उजरत अदा करते हैं
हर एक दीवार की
क़ीमत चुकानी पड़ती है
तब जाके सर छुपाने को
ये छत मिली हुई है
जीने की इजाज़त मिली हुई है
कुछ ऐसे भी हैं ज़मीं परस्त यहाँ
जो खाते नहीं हैं शिकस्त यहाँ
जो अपनी मर्ज़ी का
फ़लक चुनकर
अपने बादल ख़ुद बनाते हैं
बग़ैर दर-ओ-दीवार के रहते हैं
और समझते हैं
सहूलत मिली हुई है
हालांकि ज़िन्दगी से करके बात
किराये के दिन किराये की रात
रफ़्ता रफ़्ता सब गुज़र जाते हैं
बंद हो जाते हैं
आंखों के रौशनदान
मिल जाता है सबको
ज़ाती मकान॥