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किसका क्या कर्तव्य जान कब कोई पाया / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
किस का क्या कर्तव्य जान कब कोई पाया।
आया ऐसा समय कि कोई काम ना आया॥
चटक चाँदनी स्नात दूध धोयी सब रातें
भोर छुपा जब चाँद भानु ने मुख दिखलाया॥
हुई सुनहरी भोर यामिनी बीती काली
खिला धरा का रूप रंग अनुपम बिखराया॥
खिले कमल के फूल धन्य हो गया सरोवर
झूमा मस्त समीर सुगंधित कर ली काया॥
मूँदे दोनों नयन ह्रदय छवि अंकित कर ली
भजन सुरीले कंठ सुनाया जो मन भाया॥
जिसका हिमगिरि वास बसेरा करे शीत में
मेरे मन की जलन बुझाने कभी न आया॥
मंदिर मंदिर ढूंढ फिर सब शिव शंकर को
किया हृदय में ध्यान दरश शंकर का पाया॥