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किसको मंगल गीत सुनाएँ/जय कृष्ण राय तुषार
Kavita Kosh से
किसको
गीत सुनाएं
मौसम बहरा है |
असमंजस की
छत के नीचे
रिश्ते -नाते हैं ,
घुटन -बेबसी
ओढ़े हम सब
हँसते -गाते हैं ,
पल -पल
अपने ऊपर बस
तिथियों का पहरा है |
बाप -मतारी
बीवी -बच्चे
भाई के ताने ,
अलग -अलग
हैं जुमले सबके
अलग -अलग माने ,
गिरगिट जैसा
रंग बदलता
अपना चेहरा है |
अँधियारा है
अपने मन का
सूरज अंधा है ,
जो भी टूटा है
वह समझो
अपना कंधा है ,
पोखर के
पानी सा अपना
जीवन ठहरा है |
त्योहारों -
ऋतुओं का
अब भी आना -जाना है ,
बेबस
सबकी बाट
जोहता तालमखाना है |
जीवन का
यह कुआँ
न जाने कितना गहरा है |