किसने पाकीज़ा क़दम रखा है मैखाने में / सादिक़ रिज़वी
किसने पाकीज़ा क़दम रखा है मैखाने में
क़ुद्स का रंग झलकने लगा पैमाने में
गुनगुना कर ये कहा शमआ से परवाने ने
प्यार की प्यास बुझा करती है जल जाने में
जब ग़लत चलता है काग़ज़ पे मुसन्निफ़ का क़लम
हँसता किरदार भी रो देता है अफ़साने में
मौत भी लगने लगे शहद से ज़्यादा शीरीं
नेक आमाल हैं काफी ये मज़ा पाने में
जिस्म की ख़ुशबू तेरी , साथ मेरे दफ़्न हुई
राहे-बरज़ख में मदद देगी ये बहलाने में
अपनी पलकों में हर इक ख़्वाब छुपा कर रखना
होगा तूफ़ान खड़ा राज़ के खुल जाने में
बे-कमां तीरे नज़र करते हैं घायल दिल को
उस में लज्ज़त है अजब यार को तड़पाने में
है शहंशाही जुनूं इश्क़ का ये ताजमहल
हैसियत इतनी कहाँ आज के दीवाने में
मजमए बज़्मे-सुख़न क्यों न हो नालां 'सादिक़'
जल्द आ जाते हो तुम लोगों के बहकाने में