भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसने पिघले हुए अनल को पीने का हठ ठाना! / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
किसने पिघले हुए अनल को पीने का हठ ठाना!
किसने कपिला कामधेनु पर क्रूर-कुटिल शर ताना!
शांत तपोवन के हरिणों को चाहा चट कर जाना!
यह भूखा भेड़िया कहाँ से आ पहुँचा दीवाना!
. . .
उनकी ही वाणी में है उनको समझाना पड़ता
शास्त्रों की मर्यादा के हित शस्त्र उठाना पड़ता
मोती उगते वहीं जहाँ मोती का दाना पड़ता
आँधी बोनेवाले को तूफान चबाना पड़ता