भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसने ये हमको ख़्वाब में इतना डरा दिया / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


किसने ये हमको ख़्वाब में इतना डरा दिया
बिस्तर के पास जैसे के चेहरा बना दिया

जैसे कि खुद के क़त्ल का मुज़रिम रहा हूँ मैं
इलज़ाम उसने मुझ पे ही सारा लगा दिया

शोलों से भस्म करने कि तोहमत न दो हमें
हमने तो मन कि आग से दीपक जला दिया

अब रहमतों कि बात भी करना मुहाल है
जालिम ने नाम बस्ती में अपना लिखा दिया

"आज़र" ये दर्द क्यूँ तेरे लफ़्जों में भर गया
जिसको ग़ज़ल सुनाई उसी को रुला दिया