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किसमें है दम / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

 
क्या सीखा हमने
जाते हुए साल से
कुछ भी तो नहीं
ना तुम राम बने
ना वो रहीम
ना अन्ना बन सके
ना ही समर्थक
ना समर्थन ही जुटा पाए
चालाकियां जरूर बढ़ गईं
दुश्मनों की बढ़ोत्तरी भी हुई
गाहे-बगाहे
हमने नहीं चाहा
किसी का नुकसान
लेकिन यह सफर ही ऐसा है
कुछ खुश हुए तो कुछ
हुए नाराज
सास बहू का पिटारा
पहले जैसा ही
अठखेलियां करता हुआ
वही धमाचौकड़ी
अवैध निर्माण का विस्तार
साहित्य की गिरावट
पुरस्कारों की बंदरबाट
भाई भतीजावाद
यानी सब कुछ तो हुआ
नेताओं के पेट बढ़े
अस्पतालों से लौट भी आए
भाषण भी दिए
स्विस बैंक में नोट भी है
वोटों की आड़ में राजनीति भी
सब चलता है
सब चलेगा
आप में दम हो अगर
तो रूकवा के देख लो !