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किससे खेलूँ रंग पिया / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
जब तुम ही नहीं हो संग पिया.
मैं किससे खेलूँ रंग पिया.
ये बैरी फागुन मतवाला,
करता है कितना तंग पिया.
जिस ओर नज़र उठती मेरी,
दिखता है सिर्फ अनंग पिया.
ऐसे मौसम से मन मेरा,
क्या कर पायेगा जंग पिया.
यादों के नभ में उड़ती है,
फिर मन की आज पतंग पिया.
रंगों से नहीं अब अश्क़ों से,
भीगे हैं सारे अंग पिया.
आ भी जाओ इस होली पर
डालो मत रँग भंग पिया.