किससे दर्द कहें / कमलेश द्विवेदी
मन करता है हम कुछ बोलें ऐसे चुप न रहें।
किससे दिल की बात बतायें किससे दर्द कहें।
सब अपने-अपने में उलझे
सब अपने में खोये।
जिसके आगे रोना चाहो
वो पहले ही रोये।
बाहर-बाहर हँसना-गाना भीतर अश्क़ बहें।
किससे दिल की बात बतायें किससे दर्द कहें।
कोई नहीं हमारा अपना
फिर क्यों फ़िक्र करें हम।
किसके लिये जियें दुनिया में
किसके लिये मरें हम।
आग लगाई और किसी ने हम क्यों व्यर्थ दहें।
किससे दिल की बात बतायें किससे दर्द कहें।
जीवन भर तक प्रीति-रीति कब
किसने यहाँ निभाई.
साथ मिला बस पल दो पल का
वर्षों मिली जुदाई.
ऐसे में फिर कभी किसी की कैसे बाँह गहें।
किससे दिल की बात बतायें किससे दर्द कहें।
मोह हमेशा ही दुख देता
फिर भी फँसे हुए हम।
कितनी हैं मज़बूत रस्सियाँ
जिनमें कसे हुए हम।
आओ काटें इस बंधन को और न पीर सहें
किससे दिल की बात बतायें किससे दर्द कहें।