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किसान की जेब में लॉटरी की टिकट / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
वो उड़ने वाला हेलीकॉप्टर लेकर आया
दादी भी खुश हुई।
सुबह निकला देखने मेड़ जिसकी ओट में
बेरोजगारी छुपाता था।
अब वो ऊँचे मकानों और भारी ओवरब्रिजों की ओट में
बेरोजगारी छुपाता है।
रात में गफ अँधेरा दिखा तो सोचा यह अच्छी जगह है
सुबह से खूँटियाँ गड़ने लगीं।
खैनी खाने का मन जागा तो पिता की जेब टटोली
एक और तलघर जहाँ वो पिता के जूते में पाँव डालता है।
एक कागज दिखा
डर कि चमकीले कागज पर भी लिखे जाते हैं स्यूसाइड नोट्स।
लॉटरी की किकट थी
सोचा किसने कुतर दी पिता की जिद की अनिश्चय में छलाँग।
पेट का पानी डोल गया
कि कुछ अनिश्चितताएँ तो जीवन के बाहर भी ले जाती हैं।