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किसान की मुनियाँ / निर्देश निधि

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दो बरस से नहीं मिला है
बाबा के गन्ने की फसलों का पैसा
न बरसे हैं मेह धान की अलवाई फसलों पर
माँ की सुनहरे सिलकिन गेहुओं से भरी कोठियाँ हो गई खाली
साहूकार चाचा का कर्जा पटाते-पटाते
किसान की मुनिया बाट जोह रही है साल भर से
ब्याह का जोड़ा पहनने को
मांग में सिंदूर पाँव में झाँझर झनकाने को
सगाई पर आए कंगन
रोज़ कम से कम एक बार पहनकर हौंसती है
ढूँढती है दो गज की ओढ़नी तले अपने सातों आसमान
किसान की मुनियाँ
वो नहीं जानती कौन उसके सपनों के खून पर आमादा है
दादा के कुर्ते की खाली जेबों की कसक
दादी की फटी एड़ियों में गोखरू की चुभन देख
अपने सपनों की समिधा बनाकर
झोंक देती है माँ की गृहस्थी के हवन कुंड में
किसान की मुनियाँ
बाबा के डांडे वाले खेतों के सीने पर
चढ़ बैठी है डामर वाली रोड
फर्राटा भरती रहती हैं दिन भर उसपर मोटर वाली गाडियाँ
घोलती रहती हैं शहरी कड़वाहट
गन्ने की गंवई मिठास में
धान की दूध भरी बालियों में
अब तक नहीं मिला है बाबा को मुआवजा
खेतों के सीने पर चढ़ी डामर वाली रोड का
चढ़ जाती है अक्सर साँझ पड़े ही
किसान की मुनियाँ के कंधों पर
कचहरी के गलियारों से लौटे भैया के चेहरे की थकान
हद तो हो गई है इस बार
बाबा जला रहे हैं गन्ने की होलियाँ
वो हैरत में डूबती उबरती उम्मीदों को दरकिनार करती
डरी सहमी-सी देखा करती है चुपचाप
बाबा कि समस्या का ये अजीब-सा समाधान
और वह छोड़ देती है सबसे छिपाकर रखे
प्रीतम के सलौने नयनाभिराम सपनों को
होने के लिए लहूलुहान
किसान की मुनियाँ