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किसान / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

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जहवाँ न उजहल खगड़ा-धमोइया, ओही खेते उपजेला धान
ओही खेते गेहूँ-बूँट-रहर-मटरन-जव, ओही खेते गड़ेला मचान
छिछिलेदर फूँटिया सियरवो ना पूछे, बांस नियन मकई के थान
जेकर पसेना बूंन मोती झरि लावेला, सभे के जियावेला किसान

खेतही मड़इया मड़उवे के छाजन, बाँसवा के उटुँग मचान
सावन-भदउआ के रतिया भेयावन, लउर लेके सूतेला चितान
सनसन पुरवा के लरहा झटासेला, तबहूँ ना जागेला नादान
‘पट’ सेनी ओही आरी करेला सहिलिया, चिहुँकि के फानेला जवान

हँसुआ-खुरुपिया-कुदारी-हर-हेंगा लेके, दिन में करेला घमसान
ठेहा पर चूकामूका बइठेला गँड़ासी लेके, जसही होखेला मुँह लुकान
मँस-डँस, पिलुआ-पताई के ना फिकिर करे, छनकल राखेला बथान
पिछिली पहर लोही लागेले पहिलकी, ओही राति जागेला किसान

जेठ के झरक, झाराझरी चाहे सावन के, माघ के टुसार मारे जान
कवनो जुगुतिये दइब बिलमावे, जनमे से मेहनत के बान
एही रे धरतिया प बाप-दादा रहले, दूधे-दही कइले असनान
कवन कमाई राम, आजु चूक गइलीं कि फुटहा के छछने किसान

जेकरा धरमे चमकत बाटे ईंटा-ईंटा, गछियोले ऊँचे-ऊँच मकान
धरती से बड़ी दूर, बदरियो से ऊपर, चिल्हि अइसन उड़ता विमान
आदिमी के हुकुम बजावेले मशीनिया कि रोजे रोजे बढ़े बिगेयान
कवनि कमाई राम, आजु चूकि गइलीं कि देखि-देखि तरसे किसान

जेकरा धरमे बसे शहर-बजरिया, दिने दिन बढ़ती प शान
जेकरा धरमे अनमन रंग चीजवा से चमचम चमके दोकान
जेकरा धरमे झारि लामी-लामी धोतिया आदमी कहावे बबुआन
कवनि कमाई राम, आजु चूकि गइलीं कि गंवंई में दुखिया किसान

रचनाकाल : 30.07.1952