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किसी और की है / राजकिशोर सिंह

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सुन्दरता के समंदर में
ढूँढते-ढूँढते मिला
एक अजब हसीन
कुछ लिए हुए मिठास
कुछ लिए हुए नमकीन
जिनकी काली-काली आँऽें
मोहती है मेरा मन
जिनकी बिऽरी जुल्पफों पर
टिका रहता मेरा हर क्षण
उनके सुन्दर गाल
होंठ लाल
नितम्ब विशाल
हिरण सी चाल
क्यों नहीं ला सकता
मर्दों के दिल पर भूचाल
तभी तो देऽकर
मर्द भरते हैं आहें
पफैलाते हैं
उनकी तरपफ बाहें
लेकिन बनी नहीं
किन्हीं की बात
भले मन में आती रहे
प्यार की सौगात
मर्द की औकात
वह किसी और की है।