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किसी की खोज में फिर खो गया कौन / परवीन शाकिर

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किसी की खोज में फिर खो गया कौन
गली में रोते-रोते सो गया कौन

बड़ी मुद्दत से तन्हा थे मिरे दुःख
ख़ुदाया मेरे आँसू रो गया कौन

जला आई थी मैं तो आस्तीं तक
लहू से मेरा दामन धो गया कौन

जिधर देखूँ खड़ी है फ़स्ल-ए-गिरिया<ref>रुदन की पैदावार</ref>
मिरे शहरों में आँसू बो गया कौन

अभी तक भाईयों में दुश्मनी थी
ये माँ के ख़ूँ<ref>रक्त</ref> का प्यासा हो गया कौन

शब्दार्थ
<references/>