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किसी के तज़्क़िरे बस्ती में कू-ब-कू जो हुए / फ़राज़
Kavita Kosh से
किसी के तज़्किरे<ref>चर्चे</ref> बस्ती में कू-ब-कू<ref>जगह-जगह</ref> जो हुए
हमीं ख़मोश<ref>शांत</ref> थे मौज़ू-ए-गुफ़्तगू<ref>चर्चा के विषय</ref> जो हुए
न दिल का दर्द ही कम है न आँख ही नम है
न जाने कौन-से अरमाँ <ref>लालसाएँ</ref>थे वो लहू जो हुए
नज़र उठा तो गुमगश्ता-ए-तहय्युर<ref>अचंभे में गुम</ref> थे
हम आइने की तरह तेरे रू-ब-रू<ref>आमने-सामने</ref> जो हुए
हमीं हैं वादा-ए-फ़र्दा<ref>(कभी पूरा न होने वाला)कल मिलने का वचन</ref> प’ टालने वाले
हमीं ने बात बदल दी बहाना-जू <ref>रोज़ नए बहाने बनाने वाले</ref>जो हुए
‘फ़राज़’ हो कि वो ‘फ़रहाद’ हो कि हो मंसूर
उन्हीं का नाम है नाकामे-आरज़ू<ref>आकांक्षाओं में असफल</ref> जो हुए
शब्दार्थ
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