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किसी को सोचना दिल का गुदाज़ हो जाना / 'फ़य्याज़' फ़ारुक़ी
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किसी को सोचना दिल का गुदाज़ हो जाना
हवा की छेड़ से पत्तों का साज़ हो जाना
कभी वो गुफ़्तगू जैसे के कुछ छुपा ही नहीं
कभी वो बोलती आँखों का राज़ हो जाना
बढ़ाना हाथ पकड़ने को रंग मुट्ठी में
तो तितलियों के परों का दराज हो जाना
कभी तो गफ़लतें सजदों में और कभी यूँ भी
के उस को सोच ही लेना नमाज़ हो जाना
वो डूबता हुआ सूरज वो कारवाँ का ग़ुबार
हक़ीक़तों का भी पल में मजा़ज हो जाना
किवाड़ खुलते हों जैसे किसी ख़ज़ाने के
वो ख़्वाब ख़्वाब सी आँखों का बाज़ हो जाना