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किसी को हमीं ने पुकारा तो होता / रंजना वर्मा
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किसी को हमीं ने पुकारा तो होता
ग़मे ज़िंदगी का सहारा तो होता
झुका देते सर अपना क़ातिल के आगे
किया तूने कोई इशारा तो होता
सितारे सजाते मगर चाँद तुम ने
फ़लक से जमीं पर उतारा तो होता
बनाते मुहब्बत का हम तुमको जामिन
निगाहों से रस्ता बुहारा तो होता
भटकतीं न नज़रे मगर देखने को
कोई खूबसूरत नज़ारा तो होता
न ख़्वाहिश करें चाँद की आसमाँ में
नसीबां में नन्हा सितारा तो होता
नहीं होता तक़दीर में कोई दरिया
समन्दर को हमने निहारा तो होता