किसी गली में कि महताब में निहां होगा
मैं दश्त में हूँ तो इस वक़्त तू कहां होगा
इसी उम्मीद पे काटा है ये पहाड़ सा दिन
कि शब को ख़्वाब में तू मुझ पे मेहरबाँ होगा
तू अपने तौर से तय कर विसाल की मंज़िल
तेरी तरफ से मेरा दिल न बदगुमां होगा
जो इससे अहले-ज़माना ने हाथ खींच लिया
ज़रूर कारे-महब्बत में कुछ जियां होगा।
ये अहले-शहर ने इक बार भी नहीं सोचा
ज़रा सी आग से चारों तरफ धुआं होगा।