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किसी ग़रीब की आँखों में झांककर देखो / आनंद कुमार द्विवेदी
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कभी बड़ी कभी छोटी, दिखायी देती है ,
ग़ज़ल भी, नोची खसोटी दिखायी देती है |
यह जिंदगी जो हर तरह, खरी थी सौ पैसे,
वक़्त की मार से , खोटी दिखायी देती है |
जब से उनकी दुकान चल गयी, मक्कारी की,
'फलक' पे उनकी लंगोटी दिखयी देती है |
हमारी जिंदगी के हाल न पूछो यारों ,
किसी कंगाल की बेटी दिखयी देती है |
किसी गरीब की आँखों में झांककर देखो,
हीर राँझा नहीं रोटी दिखायी देती है |