भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी छोटे से सितारे के तले / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माफ़ी माँगती हूँ मौक़े से कि उसे मैंने ज़रूरत कहा ।
ज़रूरत से माफ़ी अगर मुझसे ग़लती हुई ।
ख़ुशी मुझसे नाराज़ न हो कि मैंने उसे अपना समझा ।
मुर्दे मुझे माफ़ कर दें कि उनकी याद सिर्फ़ झिलमिलाती रही ।
वक़्त से माफ़ी माँगती हूँ कि हर पल दुनिया की बहुरंगी तस्वीर देखी नहीं गई ।
पुराने प्यार से माफ़ी कि मैंने नए को पहला समझा ।
भूले-बिसरे जंग माफ़ कर देना कि मैं गुलदस्ता लेकर घर लौट आई ।
माफ़ कर देना कि मैंने रिसते घाव को अपनी उँगली से कुरेदा ।
रसातल में चीख़ने वालों से माफ़ी कि मैं संगीत पर थिरकती रही ।
जो रेलवे स्टेशन में थे उनसे माफ़ी कि मैं सुबह पाँच बजे सोती रही ।
खदेड़ी उम्मीदें माफ़ करना कि मैं बाज़ वक़्त हँसती रही ।
रेगिस्तानों से माफ़ी कि मैं चम्मचभर पानी लेकर भी नहीं पहुँची ।
और बरसों से पिंजरे में बन्द, ओ बाज़, मुझे माफ़ कर देना
तुम्हें एक ही जगह एकटक देखते रह जाना पड़ा,
अगर तुम्हारे मुर्दे जिस्म को ठूँसा जाए मुझे बेकसूर मान लेना ।
मेज़ के चार पाए के लिये गिराए गए पेड़ से माफ़ी माँगती हूँ ।
बड़े सवालों के छोटे जवाबों के लिए माफ़ी माँगती हूँ ।
सच्चाई ! मुझ पर ज़्यादा ग़ौर मत करना ।
पवित्रता ! मुझसे उदारता बरतना ।
ओ जीवन का रहस्य ! अगर तुम्हारे नक़ाब से डोर खींच निकालती हूँ तो इसे सह लेना ।
आत्मा ! अगर तुमसे दूर रही तो मुझ पर इलज़ाम मत लगाना ।
हर कुछ से माफ़ी माँगती हूँ कि मैं हर कहीं नहीं हो पाई ।
हर किसी से माफ़ी माँगती हूँ कि मुझे पता नहीं था कि कैसे हर कोई हुआ जा सके ।
मुझे पता है कि जब तक जीना है कोई बहाना नहीं मिलेगा,
क्योंकि मैं ख़ुद ही अपने राह का रोड़ा हूँ ।
ओ मेरी भाषा ! मैं कसूरवार नहीं अगर भारी-भरकम शब्द ले आती हूँ
और फिर कोशिश करती हूँ कि वे हल्के से लगें ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य