भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान / भगवत रावत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान

तो घर का छोटा-सा कमरा भी बड़ा हो जाता है

न जाने कहाँ-कहाँ से इतनी जगह निकल आती है

कि दो-चार थके-हारे और आसानी से समा जाएं

भले ही कई बार हाथों-पैरों को उलाँघ कर निकलना पड़े

लेकिन कोई किसी से न टकराये।


जब रहता है, कमरे के भीतर थोड़ा-सा आसमान

तो कमरे का दिल आसमान हो जाता है

वरना कितना मुश्किल होता है बचा पाना

अपनी कविता भर जान !