अनन्त आकाशस्रोत मेघ
और सागर में अंजलि
इस दृश्य में मृत्यु को पार कर लेना
आईने में बातचीत और चेहरा
अब कभी दिखाई नही पड़ता
फिर भी, प्रणय और विदाई उत्सव ।
तुम लोगों की आँखों की गहराई में
जो अश्रु और स्वरलिपि है
तुम लोगों के विस्मृत उस स्वर में
जो लाँछना की श्रान्ति है
किसी से मन को श्रान्ति नहीं मिलती है —
इस गीत में दिवस - रात्रि, प्रभात - गोधूलि
सब जैसे खो गए हैं,
जन्म से मृत्यु तक
इस छन्द से ज़्यादा और क्या बात कहूँ ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार