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किसी निष्कर्ष के घर तक नहीं पहुँचे / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
किसी निष्कर्ष के घर तक नहीं पहुँचे
भटकते प्रश्न उत्तरतक नहीं पहुँचे
पहुँच जाते तो हम भी तोड़ लेते फल
हमारे हाथ तरुवर तक नहीं पहुँचे
नदी देखी है, हमने ताल देखे हैं
नहीं, हम लोग सागर तक नहीं पहुँचे
वे कैसे सीख लें सम्मान की भाषा
कभी जो लोग आदर तक नहीं पहुँचे
हमारे शीश पर भी है गगन की छत
अभी हम लोग छप्पर तक नहीं पहुँचे
जो उलझे प्रेम के संदर्भ ग्रंथों में
कभी वे ढाई आखर तक नहीं पहुंचे
हमारा स्वप्न है दो जून की रोटी
हमारे स्वप्न अम्बर तक नहीं पहुँचे