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किसी ने पाँव को चूमा हो जैसे / शिवांगी गोयल
Kavita Kosh से
मैंने सिर्फ़ एक आवाज़ दी थी,
मुझे नहीं पता था कि तुम चले आओगे!
मेरे तो पाँव भी मिट्टी से सने थे
जब मैंने तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाया था;
तुम अब कहते हो कि इंसान को अपने पाँव साफ़ रखने चाहिए
पर उस दिन तुमने झुककर मेरे पाँव चूम लिए थे...
मैं तुम्हारे पास से लौटकर जब घर आयी तो
बिना पाँव धुले घर के मंदिर में गयी और देवता से कहा,
“इन पैरों से ज़्यादा सुंदर और प्रेम में डूबा कुछ भी नहीं है,
ये मैं तुम्हें अर्पित करती हूँ!”
उस दिन देवताओं ने भी मेरे पैर चूमे थे।