किसी ने प्रश्न पूछा है / प्रभात पटेल पथिक
रहा कैसा आज का दिन
किसी ने प्रश्न पूछा है। 
कोई अपनी है जो मुझको है अपना मानती दिल से। 
सुख या दुःख हो कोई सभी बातें बताती है। 
कभी यदि हो न मिलना एक दिन को तो बताएँ क्या-
कि कैसे बीतती उस पर, फोन कितने लगाती है। 
समय की बेबसी मैं फोन पर सुस्पष्ट सुनता हूँ। 
किया क्या आज मेरे बिन-
किसी ने प्रश्न पूछा है। 
मिलन की चाह का अनुवाद वह आँसू में करती है-
रो देती है वह बहुधा, बड़ी अन्तर्प्रकृति है वो। 
कोई अन्तर्प्रकृति लड़का ही है उसको समझ सकता-
वरन् खुल्ला-दिमागों के लिए कोई विकृति है वो। 
मेरी खातिर वह ईश्वर की बनाई अप्रतिम कृति है! 
"जियें कब तक यों तारे गिन?"-
किसी ने प्रश्न पूछा है। 
" तुम्हारा रोज कार्यालय व उस पर व्यस्तताएँ नित, 
हमारी प्रेम अकुलाहट को प्रतिदिन ही बढ़ाती हैं। 
ये ऋतु ये धूप ये परिदृश्य, कब तक बीतेंगे एकल
हमारी ही तरह तुमको नहीं क्या याद आती है? " 
तुम्हारी ही तरह जीना नहीं आता हमें बिल्कुल!-
वरष-से कट रहे पल-छिन
किसी ने प्रश्न पूछा है!
 
	
	

