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किसी ने मौज की ज़द पर सफ़ीना छोड़ दिया / ईश्वरदत्त अंजुम
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किसी ने मौज की ज़द पर सफ़ीना छोड़ दिया
किसी ने देख वो तूफां के मुंह को मोड़ दिया
किसी ने फूंक दिया खिरमने-सुकूने-हयात
किसी ने दर्द दिया और दिल को तोड़ दिया
न कोई हमदमे-मंज़िल न रास्ता कोई
ये किस मक़ाम पे किस्मत ने ला के छोड़ दिया
अजब तरह का है किरदार इस ज़माने का
किसी ने साथ निभाया किसी ने छोड़ दिया
वो शख्स क़ाबिले-ताज़ीम है बहुत अंजुम
कि जिस ने टूटे हुए दिल को फिर से जोड़ दिया