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किसी बैलून की मानिंद भर गया हूँ मैं / ज्ञान प्रकाश विवेक
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किसी बैलून की मानिन्द भर गया हूँ मैं
सुई को देख कर यारो! सिहर गया हूँ मैं
कभी तो गूँज की तरह रहा हूँ गुम्बद में
कभी सदाओं की तरह बिखर गया हूँ मैं
ये बात मौत की होती तो मैं न करता यक़ीं
ये ज़िन्दगी ने कहा कि मर गया हूँ मैं
हुआ ये इल्म मुझे बाद में वही मैं था
किसी जहाज़-सा जिस पर गुज़र गया हूँ मैं
नहीं किसी को पता इस शहर में नाम मेरा
किसी आवाज़ पे फिर भी ठहर गया हूँ मैं