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किसी साहित्य प्रेमी को / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
किसी साहित्य प्रेमी को बुलाया जाए,
उसको साहित्य की लोरी भी सुनाया जाए।
जो लुटा बैठे हैं सम्मान भी अगर अपना,
उनके एहसास को अब फिर से जगाया जाए।
बस ज़मीं पर ही नज़र जिस की पड़ी रहती है,
उसको आकाश में तारा भी दिखाया जाए।
जो पुरस्कार के लायक था, उसे मिल न सका,
घोर अपमान को अब कैसे पचाया जाए।
वह चमन मेरा जला डाला, मुझे ग़म है मगर,
फिर कहाँ एक नया बाग़ लगाया जाए।
काम संसार में करना है अगर तुमको महान,
अब क़लम का कोई जादू भी दिखाया जाए।