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किसी से कुछ कहो मत / जय चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
हो रहा है जो उसे होने दो
किसी से कुछ कहो मत
खून की प्यासी नदी से
घिरी है
बस्ती समूची
राजधानी बाँटती है
सांत्वनायेँ
सिर्फ छूँछी
डूबना है यहाँ सबको ही
सभी की यही किस्मत
अनबुझी इक प्यास
ओढ़े
लोग भागे जा रहे हैं
साथ वाले को गिराकर
स्वयं
आगे जा रहे हैं
एक चुटकी हँसी जीने की
किसी को कहाँ फुर्सत!
शकुनि, दुर्योधन,
दुशासन
लिख रहे हैं फैसले
मौन हैं धृतराष्ट्र
जलता हस्तिनापुर
तो जले
ये धुआँये-दिन कोई जी ले
यही है बड़ी हिम्मत