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किसी से न डरने को जी चाहता है / रंजना वर्मा

किसी से न डरने को जी चाहता है।
गगन में विचरने को जी चाहता है॥

बहारों का मौसम है फिर लौट आया
कली का सँवरने को जी चाहता है॥

जहाँ पर मुहब्बत के हैं फूल बिखरे
वहीं से गुजरने को जी चाहता है॥

किया कोई वादा निभाया न तूने
यकीं फिर भी करने को जी चाहता है॥

बता रस्म दुनिया कराती बहुत कुछ
मगर अब मुकरने को जी चाहता है॥

न मंजिल किसी को मिली ज़िन्दगी में
डगर में ठहरने को जी चाहता है॥

लिया जन्म है गोद में जिस धरा की
उसी हेतु मरने को जी चाहता है॥